भारत की संस्कृति कई चीज़ों को मिला-जुलाकर बनती है जिसमें भारत का लम्बा इतिहास, विलक्षण भूगोल और सिन्धु घाटी की सभ्यता के दौरान बनी और आगे चलकर वैदिक युग में विकसित हुई, बौद्ध धर्म एवं स्वर्ण युग की शुरुआत और उसके अस्तगमन के साथ फली-फूली अपनी खुद की प्राचीन विरासत शामिल हैं। इसके साथ ही पड़ोसी देशों के रिवाज़, परम्पराओं और विचारों का भी इसमें समावेश है। पिछली पाँच सहस्राब्दियों से अधिक समय से भारत के रीति-रिवाज़, भाषाएँ, प्रथाएँ और परंपराएँ इसके एक-दूसरे से परस्पर संबंधों में महान विविधताओं का एक अद्वितीय उदाहरण देती हैं। भारत कई धार्मिक प्रणालियों (religious systems), जैसे कि हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म जैसे धर्मों का जनक है। इस मिश्रण से भारत में उत्पन्न हुए विभिन्न धर्म और परम्पराओं (traditions) ने विश्व के अलग - अलग हिस्सों को भी काफ़ी प्रभावित किया है
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भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में कई दृष्टियों से विशेष महत्त्व रखती है।
- यह संसार की प्राचीनतम संस्कृतियों में से है। भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति है। मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद से यह मिस्र, मेसोपोटेमिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं के समकालीन समझी जाने लगी है।
- प्राचीनता के साथ इसकी दूसरी विशेषता अमरता है। चीनी संस्कृति के अतिरिक्त पुरानी दुनिया की अन्य सभी - मेसोपोटेमिया की सुमेरियन, असीरियन, बेबीलोनियन और खाल्दी प्रभृति तथा मिस्र ईरान, यूनान और रोम की-संस्कृतियाँ काल के कराल गाल में समा चुकी हैं, कुछ ध्वंसावशेष ही उनकी गौरव-गाथा गाने के लिए बचे हैं; किन्तु भारतीय संस्कृति कई हज़ार वर्ष तक काल के क्रूर थपेड़ों को खाती हुई आज तक जीवित है।
- उसकी तीसरी विशेषता उसका जगद्गुरु होना है। उसे इस बात का श्रेय प्राप्त है कि उसने न केवल महाद्वीप-सरीखे भारतवर्ष को सभ्यता का पाठ पढ़ाया, अपितु भारत के बाहर बड़े हिस्से की जंगली जातियों को सभ्य बनाया, साइबेरिया के सिंहल (श्रीलंका) तक और मैडीगास्कर टापू, ईरान तथा अफगानिस्तान से प्रशांत महासागर के बोर्नियो, बाली के द्वीपों तक के विशाल भू-खण्डों पर अपनी अमिट प्रभाव छोड़ा।
संस्कृति
- सर्वांगीणता, विशालता, उदारता और सहिष्णुता की दृष्टि से अन्य संस्कृतियों की अपेक्षा अग्रणी स्थान रखती है।
भाषा[संपादित करें]
भारत में बोली जाने वाली भाषाओँ की बड़ी संख्या ने यहाँ की संस्कृति और पारंपरिक विविधता को बढ़ाया है। १००० (यदि आप प्रादेशिक बोलियों और प्रादेशिक शब्दों को गिनें तो, जबकि यदि आप उन्हें नहीं गिनते हैं तो ये संख्या घट कर २१६ रह जाती है) भाषाएँ ऐसी हैं जिन्हें १०,००० से ज्यादा लोगों के समूह द्वारा बोला जाता है, जबकि कई ऐसी भाषाएँ भी हैं जिन्हें १०,००० से कम लोग ही बोलते है। भारत में कुल मिलाकर ४१५ भाषाएं उपयोग में हैं भारतीय संविधान ने संघ सरकार के संचार के लिए हिंदी और अंग्रेजी, इन दो भाषाओं के इस्तेमाल को आधिकारिक भाषा (official language) घोषित किया है व्यक्तिगत राज्यों के उनके अपने आतंरिक संचार के लिए उनकी अपनी राज्य भाषा (state's language) का इस्तेमाल किया जाता है भारत में दो प्रमुख भाषा सम्बन्धी परिवार हैं - भारतीय-आर्य भाषाएं और द्रविण भाषाएँ, इनमें से पहला भाषा के परिवार मुख्यतः भारत के उत्तरी (northern), पश्चिमी (western), मध्य (central) और पूर्वी (eastern) क्षेत्रों के फैला हुआ है जबकि दूसरा भाषा परिवार भारत के दक्षिणी भाग में.भारत का अगला सबसे बड़ा भाषा परिवार है एस्ट्रो-एशियाई (Austro-Asiatic) भाषा समूह, जिसमें शामिल हैं भारत के मध्य और पूर्व में बोली जाने वाली मुंडा भाषाएँ (Munda languages), उत्तरपूर्व में बोई जाने वाली खासी भाषाएँ (Khasian languages) और निकोबार द्वीप (Nicobarese languages) में बोली जाने वाली निकोबारी भाषाएँ (Nicobar Islands).भारत का चौथा सबसे बड़ा भाषा परिवार है तिब्बती- बर्मन भाषाओँ (Tibeto-Burman languages) का परिवार जो अपने आप में चीनी- तिब्बती भाषा परिवार का एक उपसमूह है।
धर्म[संपादित करें]
धर्म | जनसंख्या | प्रतिशत |
---|---|---|
सभी धर्म | १,०२८,६१०,३२८ | १००.००% |
हिन्दू | ८२७,५७८,८६८ | ८०.४५६% |
मुसलमान | १३८,१८८,२४० | १३.४३४% |
ईसाई | २४,०८०,०१६ | २.३४१% |
सिख | १९,२१५,७३० | १.८६८% |
बौद्ध | ७,९५५,२०७ | ०.७७३% |
जैन | ४,२२५,०५३ | ०.४११% |
अन्य | ६,६३९,६२६ | ०.६४५४% |
धर्म नहीं कहा | ७२७,५८८ | ०.०७% |
मुख्य लेख : भारत में धर्म और भारतीय धार्मिक समुदाय
अब्राहमिक के बाद भारतीय धर्म (Indian religions) विश्व के धर्मों में प्रमुख है, जिसमें हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म, सिख धर्म, जैन धर्म, आदि जैसे धर्म शामिल हैं आज, हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म क्रमशः दुनिया में तीसरे और चौथे सबसे बड़े धर्म हैं, जिनमें लगभग १.४ अरब अनुयायी साथ हैं।
विश्व भर में भारत में धर्मों में विभिन्नता सबसे ज्यादा है, जिनमें कुछ सबसे कट्टर धार्मिक संस्थायें और संस्कृतियाँ शामिल हैं। आज भी धर्म यहाँ के ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों के बीच मुख्य और निश्चित भूमिका निभाता है।
८०.४% से ज्यादा लोगों का धर्म हिन्दू धर्म है। कुल भारतीय जनसँख्या का १३.४% हिस्सा इस्लाम धर्म को मानता हैसिख धर्म, जैन धर्म और खासकर के बौद्ध धर्मका केवल भारत में नहीं बल्कि पुरे विश्व भर में प्रभाव है ईसाई धर्म, पारसी धर्म, यहूदी और बहाई धर्म (Bahá'í Religion ) भी प्रभावशाली हैं, लेकिन उनकी संख्या कम है। भारतीय जीवन में धर्म की मज़बूत भूमिका के बावजूद नास्तिकता और अज्ञेयवादियों (agnostic) का भी प्रभाव दिखाई देता है।
समाज[संपादित करें]
समीक्षा[संपादित करें]
यूजीन एम. मकर के अनुसार, भारतीय पारंपरिक संस्कृति अपेक्षाकृत कठोर सामाजिक पदानुक्रम द्वारा परिभाषित किया गया है उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों को छोटी उम्र में ही उनकी भूमिकाओं और समाज में उनके स्थान के बारे में बताते रहा जाता है उनको इस बात से और बल मिलता है की और इसका मतलब यह है कि बहुत से लोग इस बात को मानते हैं की उनकी जीवन को निर्धारण करने में देवताओं और आत्माओं की ही पूरी भूमिका होती है धर्म विभाजित संस्कृति जैसे कई मतभेद. जबकि, इनसे कहीं ज्यादा शक्तिशाली विभाजन है हिन्दू परंपरा में मान्य अप्रदूषित और प्रदूषित व्यवसायों का. सख्त सामाजिक अमान्य लोग इन हजारों लोगों के समूह को नियंत्रित करते हैं हाल के वर्षों, खासकर शहरों में, इनमें से कुछ श्रेणी धुंधली पड़ गई हैं और कुछ घायब हो गई हैं एकल परिवार (Nuclear family) भारतीय संस्कृति के लिए केंद्रीय है। महत्वपूर्ण पारिवारिक सम्बन्ध उतनी दूर तक होते हैं जहाँ तक समान गोत्र (gotra) के सदस्य हैं, गोत्र हिन्दू धर्मं के अनुसार पैतृक यानि पिता की ओर से मिले कुटुंब या पंथ के अनुसार निर्धारित होता है जो की जन्म के साथ ही तय हो जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में, परिवार के तीन या चार पीढ़ियों का एक ही छत के नीचे रहना आम बात हैवंश या धर्म प्रधान(Patriarch) प्रायः परिवार के मुद्दों को हल करता है।
विकासशील देशों में, भारत अपनी निम्न स्तर की भौगोलिक और व्यावसायिक गतिशीलता की वजह से वृहद रूप से दर्शनीय है यहाँ के लोग कुछ ऐसे व्यवसाय को चुनते हैं जो उनके माता-पिता पहले से करते आ रहे हैं और कभी-कभार भौगोलिक रूप से वो अपने समाज से दूर जाते हैं
जाति व्यवस्था[संपादित करें]
मुख्य लेख : Caste system in India
भारतीय पारंपरिक संस्कृति अपेक्षाकृत कठोर सामाजिक पदानुक्रम द्वारा परिभाषित किया गया है भारतीय जाति प्रथा भारतीय उपमहाद्वीप (Indian subcontinent) में सामाजिक वर्गीकरण (social stratification) और सामाजिक प्रतिबंधों का वर्णन करती हैं, इस प्रथा में समाज के विभिन्न वर्ग हजारों सजातीय विवाह (endogamous) और आनुवाशिकीय समूहों के रूप में पारिभाषित किये जाते हैं जिन्हें प्रायः जाति (jāti) एस या कास्ट (caste) के नाम से जाना जाता है इन जातियों के बीच विजातीय समूह(exogamous group) भी मौजूद है, इन समूहों को गोत्र के रूप में जाना जाता है। गोत्र (gotras), किसी व्यक्ति को अपने कुटुम्भ द्वारा मिली एक वंशावली (clan) की पहचान है, यद्यपि कुछ उपजातियां जैसे की शकाद्विपी (Shakadvipi) ऐसी भी हैं जिनके बीच एक ही गोत्र में विवाह स्वीकार्य है, इन उपजातियों में प्रतिबंधित सजातीय विवाह जानी एक जाति के बीच विवाह को प्रतिबंद्धित करने के लिए कुछ अन्य तरीकों को अपनाया जाता है (उदाहरण के लिए - एक ही उपनाम वाले वंशों के बीच विवाह पर प्रतिबन्ध लगाना)
भले ही जाति व्यवस्था को मुख्यतः हिन्दू धर्म के साथ जोड़कर पहचाना जाता है लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में अन्य कई धर्म जैसे की मुसलमान (Muslim) और ईसाई(Christian) धर्म के कुछ समूहों में भी इस तरह की व्यवस्था देखी गई है भारतीय संविधान ने समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता (secular), लोकतंत्र जैसे सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए जाति के ऊपर आधारित भेदभावों को गिअर्कानूनी घोषित कर दिया है बड़े शहरों में ज़्यादातर इन जाति बंधनों को तोड़ दिया गया है, हालाँकि ये आज भी देश के ग्रामीण क्षेत्रों में विद्यमान है फिर भी, आधुनिक भारत में, जाति व्यवस्था, जाति के आधार पर बांटे वाली राजनीति और अलग - अलग तरीके की सामाजिक धारणाओं जैसे कई रूप में जीवित भी है और प्रबल भी होता जा रहा है
सामान्य शब्दों में, जाति के आधार पर पाँच प्रमुख विभाजन हैं:
- ब्राह्मण - "विद्वान समुदाय," जिनमें याजक, विद्वान, विधि विशेषज्ञ, मंत्री और राजनयिक शामिल हैं।
- क्षत्रिय - "उच्च और निम्न मान्यवर या सरदार" जिनमें राजा, उच्चपद के लोग, सैनिक और प्रशासक को शामिल है।
- वैश्य - "व्यापारी और कारीगर समुदाय" जिनमें सौदागर, दुकानदार, व्यापारी और खेत के मालिक शामिल है।
- शूद्र - "सेवक या सेवा प्रदान करने वाली प्रजाति" में अधिकतर गैर-प्रदूषित कार्यो में लगे शारीरिक और कृषक श्रमिक शामिल हैं।
इसके भी नीचे एक दलित समाज है जिसे हिन्दू शास्त्रों और हिन्दू कानून के अनुसार को अछूत (दलित) के रूप में जाना जाता है, हालाँकि इस प्रणाली को भारतीय संविधान के कानून के जरिए अब गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है।
ब्राह्मण वर्ण स्वयं को हिंदू धर्म के चारों वर्णों (four varnas) में सर्वोच्च स्थान पर काबिज होने का दावा करता है[9] दलित शब्द उन लोगों के समूह के लिए एक पदनाम है जिनको हिन्दू धर्म एवं सवर्ण हिन्दूओं व्दारा अछूत (untouchables) या नीची जाति (caste) का माना जाता है। स्वतंत्र भारत में जातिवाद से प्रेरित हिंसा और घृणा अपराध (hate crime) को बहुत ज़्यादा देखा गया।
परिवार[संपादित करें]
मुख्य लेख : Arranged marriage in India और Women in India
में होने वाली एक हिंदू विवाह समारोह
भारतीय समाज सदियों से तयशुदा शादियों (Arranged marriages) की परंपरा रही है। आज भी भारतीय लोगों का एक बड़ा हिस्सा अपने माता-पिता या अन्य सम्माननीय पारिवारिक सदस्यों द्वारा तय की गई शादियाँ ही करता है, जिसमें दूल्हा-दुल्हन की सहमति भी होती है[10] तयशुदा शादियाँ कई चीज़ों का मेल कराने के आधार पर उन्हीं को ध्यान में रखकर निर्धारित की जाती हैं जैसे कि उम्र, ऊँचाई, व्यक्तिगत मूल्य और पसंद, साथ ही उनके परिवारों की पृष्ठभूमि (धन, समाज में स्थान) और उनकी जाति (caste) के साथ - साथ युगल की कुन्दलिनीय (horoscopes) अनुकूलता
भारत में शादियों को जीवन भर के लिए माना जाता है[11] और यहाँ तलाक की दर संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की ५०% की तुलना में मात्र १.१% है. तयशुदा शादियों में तलाक की दर और भी कम होती है। हाल के वर्षों में तलाकदर में काफी वृद्धि हो रही है:
- इस बात पर अलग अलग राय है कि इसका मतलब क्या है: पारंपरिक लोगों के लिए ये बढती हुई संख्या समाज के विघटन को प्रदर्शित करती है, जबकि आधुनिक लोगों के अनुसार इससे ये बात पता चलती है कि समाज में महिलाओं का एक नया और स्वस्थ सशक्तिकरण हो रहा है।[13]
हालाँकि, बाल विवाह (child marriage) को १८६० में ही गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था लेकिन भारत के कुछ हिस्सों में ये प्रथा आज भी जारी है[ यूनिसेफ द्वारा संसार के बच्चों की दशा के बारे में जारी रिपोर्ट " स्टेट ऑफ़ द वर्ल्ड चिल्ड्रेन -२००९" में ४७% ग्रामीण क्षेत्रों में भारतीय महिलाएं जो कि २०-२४ साल की होंगी उनकी शादी को विवाह के लिए वैध १८ साल की उम्र से पहले ही कर दी जाती हैं रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि विश्व में ४०% होने वाले बाल विवाह अकेले भारत में ही होते हैं[
भारतीय नाम (Indian name) भिन्न प्रकार की प्रणालियों और नामकरण प्रथा (naming conventions) पर होती हैं, जो की अलग -अलग शेत्रों के अनुसार बदलती रहती हैं नाम भी धर्म और जाति से प्रभावित होती हैं और वो धर्म या महाकाव्यों से लिए जा सकते हैं भारत की आबादी अनेक प्रकार की भाषाएं बोलती हैं
समाज में नारी की भूमिका अक्सर घर के काम काज को करने की और समुदायों की नि: स्वार्थ सेवा करने का काम होता है महिलाओं और महिलाओं के मुद्दों समाचारों में केवल ७-१४% ही दिखाई देते हैं अधिकांश भारतीय परिवारों में, महिलाओं को उनके नाम पर संपत्ति नहीं मिलती है और उन्हें पैतृक संपत्ति का एक हिस्सा भी नहीं मिलता है। कानून को लागू करने मे कमजोरी के कारण, महिल्लाएं आज भी ज़मीन के छोटे से टुकड़े और बहुत कम धन मे प्राप्त होता है[ कई परिवारों में, विशेष रूप से ग्रामीण लोगों मे, लड़कियों और महिलाओं को परिवार के भीतर पोषण भेदभाव का सामना करना पड़ता है और इसी वजह से उनमें खून की कमी की शिकायत रहती है साथ- साथ वो कुपोषित भी होती हैं[
रंगोली (या कोलम) एक परंपरागत कला है जो कि भारतीय महिलाओं में बहुत लोकप्रिय हैलोकप्रिय महिला पत्रिकाएं जिनमें फेमिना (Femina) गृहशोभा (Grihshobha), वनिता (vanita), वूमेनस एरा, आदि शामिल हैं
पशु
में स्थित आलंकृत गोप्पुरम मंदिर]] मे रंगा या चित्रित किया जाता है
- इन्हें भी देखें: Animal husbandry in India एवं Sacred cow
कई भारतीयों के पास अपने मवेशी होते हैं जैसे कि गाय-बैल या भेड़
आज भी हिन्दू बहुसंख्यक देशों जैसे भारत और नेपाल में गाय के दूध का धार्मिक रस्मों में महत्वपूर्ण स्थान है। समाज में अपने इसी ऊंचे स्थान की वजह से गायें भारत के बड़े बड़े शहरों जैसे कि दिल्ली में भी व्यस्त सड़कों के पर खुले आम घूमती हैं। कुछ जगहों पर सुबह के नाश्ते के पहले इन्हें एक भोग लगाना शुभ या सौभाग्यवर्धक माना जाता है। जिन जगहों पर गोहत्या एक अपराध है वहां किसी नागरिक को गाय को मार डालने या उसे चोट पहुँचाने के लिए जेल भी हो सकती है।
गाय को खाने के विरुद्ध आदेश में एक प्रणाली विकसित हुई जिसमें सिर्फ एक जातिच्युत मनुष्य (pariah) को मृत गायों को भोजन के रूप में दिया जाता था और सिर्फ वही उनके चमड़े (leather) को निकाल सकते थे। सिर्फ दो राज्यों :पश्चिम बंगाल और केरल के अतिरिक्त हर प्रान्त में गोहत्या निषिद्ध है। हालाँकि गाय के वध के उद्देश्य से उन्हें इन राज्यों में ले जाना अवैध है, लेकिन गायों को नियमित रूप से जहाज़ में सवार कर इन राज्यों में ले जाया जाता है।[19] "गाय हमारी माता है" ऐसा विभिन्न जगह कहा जाता है, खास कर बुंदेलखण्ड की तरफ़।
परम्परा एवं रीति
नमस्ते या नमस्कार या नमस्कारम् भारतीय उपमहाद्वीप में अभिनन्दन या अभिवादन करने के सामान्य तरीके हैं। यद्यपि नमस्कार को नमस्ते की तुलना में ज्यादा औपचारिक माना जाता है, दोनों ही गहरे सम्मान के सूचक शब्द हैं। आम तौर पर इसे भारत और नेपाल में हिन्दू, जैन और बौद्ध लोग प्रयोग करते हैं, कई लोग इसे भारतीय उपमहाद्वीप के बाहर भी प्रयोग करते हैं। भारतीय और नेपाली संस्कृति में ये शब्द लिखित या मौखिक बोलचाल की शुरुआत में प्रयोग किया जाता है। हालाँकि विदा होते समय भी हाथ जोड़े हुए यही मुद्रा बिना कुछ कहे बनायी जाती है। योग में, योग गुरु और योग शिष्यों द्वारा बोले जाने वाली बात के आधार पर नमस्ते का मतलब "मेरे भीतर की रोशनी तुम्हारे अन्दर की रोशनी का सत्कार करती है " होता है
शाब्दिक अर्थ में, इसका मतलब है "मैं आपको प्रणाम करता हूँ" यह शब्द संस्कृत शब्द (नमस्): प्रणाम (bow), श्रद्धा (obeisance), आज्ञापालन, वंदन (salutation) और आदर (respect) और (ते): "आपको" से लिया गया है।
किसी और व्यक्ति से कहे जाते समय, साधारण रूप से इसके साथ एक ऐसी मुद्रा बनाई जाती है जिसमें सीने या वक्ष के सामने दोनों हाथों की हथेलियाँ एक दूसरे को छूती हुई और उंगलियाँ ऊपर की ओर होती हैं। बिना कुछ कहे भी यही मुद्रा बनकर यही बात कही जा सकती है।
भातीय व्यंजनों में से ज़्यादातर में मसालों और जड़ी बूटियों का परिष्कृत और तीव्र प्रयोग होता है इन व्यंजनों के हर प्रकार में पकवानों का एक अच्छा-खासा विन्यास और पकाने के कई तरीकों का प्रयोग होता है यद्यपि पारंपरिक भारितीय भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा शाकाहारी है लेकिन कई परम्परागत भारतीय पकवानों में मुर्गा(chicken), बकरी (goat), भेड़ का बच्चा (lamb), मछली और अन्य तरह के मांस (meat) भी शामिल हैं
भोजन भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो रोज़मर्रा के साथ -साथ त्योहारों में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है कई परिवारों में, हर रोज़ का मुख्य भोजन दो से तीन दौर में, कई तरह की चटनी और अचार के साथ, रोटी (roti) और चावल के रूप में कार्बोहाइड्रेट के बड़े अंश के साथ मिष्ठान (desserts) सहित लिया जाता है भोजन एक भारतीय परिवार के लिए सिर्फ खाने के तौर पर ही नहीं बल्कि कई परिवारों के एक साथ एकत्रित होने सामाजिक संसर्ग बढाने के लिए भी महत्वपूर्ण है
विविधता भारत के भूगोल, संस्कृति और भोजन की एक पारिभाषिक विशेषता है भारतीय व्यंजन अलग-अलग क्षेत्र के साथ बदलते हैं और इस उपमहाद्वीप(subcontinent) की विभिन्न तरह की जनसांख्यिकी (varied demographics) और विशिष्ठ संस्कृति को प्रतिबिंबित करते हैं आम तौर पर, भारतीय व्यंजन चार श्रेणियों में बाते जा सकते हैं : उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम भारतीय व्यंजन इस विविधता के बावजूद उन्हें एकीकृत करने वाले कुछ सूत्र भी मौजूद हैं मसालों का विविध प्रयोग भोजन तैयार करने का एक अभिन्न अंग है, ये मसाले व्यंजन का स्वाद बढाने और उसे एक ख़ास स्वाद और सुगंध देने के लिए प्रयोग किये जाते हैं इतिहास में भारत आने वाले अलग-अलग सांस्कृतिक समूहों जैसे की पारसी (Persians), मुग़ल और यूरोपीय शक्तियों ने भी भारत के व्यंजन को काफी प्रभावित किया है
वस्त्र-धारण
महिलाओं के लिए पारंपरिक भारतीय कपडों में शामिल हैं, साड़ी, सलवार कमीज़ (salwar kameez) और घाघरा चोली (लहंगा)धोती, लुंगी (Lungi), और कुर्ता पुरुषों(men) के पारंपरिक वस्त्र हैं बॉम्बे, जिसे मुंबई के नाम से भी जाना जाता है भारत की फैशन राजधानी है भारत के कुछ ग्रामीण हिस्सों में ज़्यादातर पारंपरिक कपडे ही पहने जाते हैं दिल्ली, मुंबई,चेन्नई, अहमदाबाद और पुणे ऐसी जगहें हैं जहां खरीदारी करने के शौकीन लोग जा सकते हैं दक्षिण भारत के पुरुष सफ़ेद रंग का लंबा चादर नुमा वस्त्र पहनते हैं जिसे अंग्रेजी में धोती और तमिल में वेष्टी कहा जाता है धोती के ऊपर, पुरुष शर्ट, टी शर्ट या और कुछ भी पहनते हैं जबकि महिलाएं साड़ी पहनती हैं जो की रंग बिरंगे कपडों और नमूनों वाला एक चादरनुमा वस्त्र हैं यह एक साधारण या फैंसी ब्लाउज के ऊपर पहनी जाती है यह युवा लड़कियों और महिलाओं द्वारा पहना जाता है। छोटी लड़कियां पवाडा पहनती हैं पवाडा एक लम्बी स्कर्ट है जिसे ब्लाउज के नीचे पहना जाता है। दोनों में अक्सर खुस्नूमा नमूने बने होते हैं बिंदी (Bindi) महिलाओं के श्रृंगार का हिस्सा है। परंपरागत रूप से, लाल बिंदी (या सिन्दूर) केवल शादीशुदा हिंदु महिलाओं द्वारा ही लगाईं जाती है, लेकिन अब यह महिलाओं के फैशन का हिस्सा बन गई है। भारतीय और पश्चिमी पहनावा (Indo-western clothing), पश्चिमी (Western) और उपमहाद्वीपीय (Subcontinental) फैशन(fashion) का एक मिला जुला स्वरूप हैं अन्य कपडों में शामिल हैं - चूडीदार (Churidar), दुपट्टा (Dupatta), गमछा (Gamchha), कुरता, मुन्दुम नेरियाथुम(Mundum Neriyathum), शेरवानी .
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