1. ऊपर-ऊपर बाबाजी, भीतर दगाबाजी – बाहर से अच्छा, भीतर से बुरा 2. आप डूबे जग डूबा – जो स्वंय बुरा होता है, दूसरों को भी बुरा समझता है 3. अधजल गगरी छलकत जाय – थोड़ी विद्या, धन या बल होने पर इतराना 4. हँसुए के ब्याह में खुरपे का गीत – बेमौका 5. बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी – भय की जगह पर कब तक रक्षा होगी
6. अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना – निर्दयी या मूर्ख के आगे दु:खड़ा रोना बेकार होता है 7. ओछे की प्रीत बालू की भीत – नीचों का प्रेम क्षणिक 8. अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग – परस्पर संगठन या मेल न रखना 9. सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को – जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना 10. बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा – जिसको दु:ख नहीं हुआ है वह दूसरे के दु:ख को समझ नहीं सकता 11. अपनी करनी पार उतरनी – किये का फल भोगना 12. कहे खेत की, सुने खलिहान की – हुक्म कुछ और करना कुछ और 13. आगे कुआँ, पीछे खाई – हर तरफ हानि का आशंका 14. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता – सिधाई से काम नहीं होता 15. गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध – बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं 16. आग लगन्ते झोंपड़ा जो निकले सो लाभ – नष्ट होती हुई वस्तुओं में से जो निकल आये वह लाभ ही है 17. दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली – काम साधारण, खर्च अधिक 18. ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी – जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना 19. सब धान बाईस पसेरी – अच्छे-बुरे सबको एक समझना 20. एक अनार सौ बीमार – एक वस्तु को सभी चाहनेवाले 21. आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास – करने को तो कुछ आये और करने लगे कुछ और 22. साँप मरे पर लाठी न टूटे – अपना काम हो जाय पर कोई हानि भी न हो 23. ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया – कहीं सुख, कहीं दु:ख 24. रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी – अधिक मजाक बुरा 25. आगे नाथ न पीछे पगहा – अपना कोई न होना, घर का अकेला होना 26. चूहे घर में दण्ड पेलते हैं – अभाव-ही-अभाव 27. पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची – जबरदस्ती किसी के सर पड़ना 28. घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना – दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना 29. नक्कारखाने में तूती की आवाज – सुनवाई न होना 30. मान न मान मैं तेरा मेहमान – जबरदस्ती किसी के गले पड़ना 31. लेना-देना साढ़े बाईस – सिर्फ मोल-तोल करना 32. किसी का घर जले, कोई तापे – दूसरे का दु:ख में देखकर अपने को सुखी मानना 33. ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका – एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना 34. पहले भीतर तब देवता-पितर – पेट-पूजा सबसे प्रधान 35. मार-मार कर हकीम बनाना – जबरदस्ती आगे बढाना 36. माले मुफ्त दिले बेरहम – मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना 37. उद्योगिनं पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी – उद्योगी को ही धन मिलता है 38. काबुल में क्या गदहे नहीं होते – अच्छे-बुरे सभी जगह हैं 39. मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी – जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राजी हों तो दूसरे को इसमें क्या 40. नौ नगद, न तेरह उधार – अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा
6. अंधों के आगे रोना, अपना दीदा खोना – निर्दयी या मूर्ख के आगे दु:खड़ा रोना बेकार होता है 7. ओछे की प्रीत बालू की भीत – नीचों का प्रेम क्षणिक 8. अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग – परस्पर संगठन या मेल न रखना 9. सत्तर चूहे खाके बिल्ली चली हज को – जन्म भर बुरा करके अन्त में धर्मात्मा बनना 10. बाँझ क्या जाने प्रसव की पीड़ा – जिसको दु:ख नहीं हुआ है वह दूसरे के दु:ख को समझ नहीं सकता 11. अपनी करनी पार उतरनी – किये का फल भोगना 12. कहे खेत की, सुने खलिहान की – हुक्म कुछ और करना कुछ और 13. आगे कुआँ, पीछे खाई – हर तरफ हानि का आशंका 14. सीधी उँगली से घी नहीं निकलता – सिधाई से काम नहीं होता 15. गाँव का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध – बाहर के व्यक्तियों का सम्मान, पर अपने यहाँ के व्यक्तियों की कद्र नहीं 16. आग लगन्ते झोंपड़ा जो निकले सो लाभ – नष्ट होती हुई वस्तुओं में से जो निकल आये वह लाभ ही है 17. दमड़ी की बुलबुल, नौ टका दलाली – काम साधारण, खर्च अधिक 18. ऊँट बहे और गदहा पूछे कितना पानी – जहाँ बड़ों का ठिकाना नहीं, वहाँ छोटों का क्या कहना 19. सब धान बाईस पसेरी – अच्छे-बुरे सबको एक समझना 20. एक अनार सौ बीमार – एक वस्तु को सभी चाहनेवाले 21. आये थे हरि-भजन को ओटन लगे कपास – करने को तो कुछ आये और करने लगे कुछ और 22. साँप मरे पर लाठी न टूटे – अपना काम हो जाय पर कोई हानि भी न हो 23. ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया – कहीं सुख, कहीं दु:ख 24. रोग का घर खाँसी, झगड़े घर हाँसी – अधिक मजाक बुरा 25. आगे नाथ न पीछे पगहा – अपना कोई न होना, घर का अकेला होना 26. चूहे घर में दण्ड पेलते हैं – अभाव-ही-अभाव 27. पूछी न आछी, मैं दुलहिन की चाची – जबरदस्ती किसी के सर पड़ना 28. घर में दिया जलाकर मसजिद में जलाना – दूसरे को सुधारने के पहले अपने को सुधारना 29. नक्कारखाने में तूती की आवाज – सुनवाई न होना 30. मान न मान मैं तेरा मेहमान – जबरदस्ती किसी के गले पड़ना 31. लेना-देना साढ़े बाईस – सिर्फ मोल-तोल करना 32. किसी का घर जले, कोई तापे – दूसरे का दु:ख में देखकर अपने को सुखी मानना 33. ताड़ से गिरा तो खजूर पर अटका – एक खतरे में से निकलकर दूसरे खतरे में पड़ना 34. पहले भीतर तब देवता-पितर – पेट-पूजा सबसे प्रधान 35. मार-मार कर हकीम बनाना – जबरदस्ती आगे बढाना 36. माले मुफ्त दिले बेरहम – मुफ्त मिले पैसे को खर्च करने में ममता न होना 37. उद्योगिनं पुरुषसिंहनुपैति लक्ष्मी – उद्योगी को ही धन मिलता है 38. काबुल में क्या गदहे नहीं होते – अच्छे-बुरे सभी जगह हैं 39. मियाँ-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी – जब दो व्यक्ति परस्पर किसी बात पर राजी हों तो दूसरे को इसमें क्या 40. नौ नगद, न तेरह उधार – अधिक उधार की अपेक्षा थोड़ा लाभ अच्छा
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